बड़ी प्रेम दीवानी बनी फिरि, आग से जल रही हुँ
आग मगर यह प्रेम की नहीं, गुस्से से जल रहीं हुँ
गुस्सा इस बात का के,
हम करना चाहे जिससे प्रेम, उससे कर नहीं पाते
और करते हैं जिससे प्रेम उसे हम नहीं भाते।
मौला तेरे हवाले करे भी तो करे कैसे जालिम मनको,
यह अटका इस दुनियादारी में ऐसे मनो दलदल में।
समज तो आवे नहीं यह बात, के बाहर निकल ने की आस भी नहीं?
ए रे पागल मन भँवरे!
क्या ढूंढे फिरे तू ?
क्यों बातके फिरे तू ?
किसे चाहे फिरे तू ?
इस दलदल को जो डुबोया जाये तुझे ?
अगर यही आस हैं तेरी ए मन! तोह दुवा मेरी मेरे खुदा से के
इतना करे तू प्यार उस बुज़दिल से के उसकी बुज़दिली नज़र न आये
इतना हो मोहब्बत उस कायर से के उसकी कायरी न दिख पाये
इतने मर मिटे उस नाचीज़ पैन के उसमे अल्लाह आप ही की छाप दिखलाये।
इतना डूबे तू तेरे इश्क़ में, के तेरी खुदी मिटजाये।
आग मगर यह प्रेम की नहीं, गुस्से से जल रहीं हुँ
गुस्सा इस बात का के,
हम करना चाहे जिससे प्रेम, उससे कर नहीं पाते
और करते हैं जिससे प्रेम उसे हम नहीं भाते।
मौला तेरे हवाले करे भी तो करे कैसे जालिम मनको,
यह अटका इस दुनियादारी में ऐसे मनो दलदल में।
समज तो आवे नहीं यह बात, के बाहर निकल ने की आस भी नहीं?
ए रे पागल मन भँवरे!
क्या ढूंढे फिरे तू ?
क्यों बातके फिरे तू ?
किसे चाहे फिरे तू ?
इस दलदल को जो डुबोया जाये तुझे ?
अगर यही आस हैं तेरी ए मन! तोह दुवा मेरी मेरे खुदा से के
इतना करे तू प्यार उस बुज़दिल से के उसकी बुज़दिली नज़र न आये
इतना हो मोहब्बत उस कायर से के उसकी कायरी न दिख पाये
इतने मर मिटे उस नाचीज़ पैन के उसमे अल्लाह आप ही की छाप दिखलाये।
इतना डूबे तू तेरे इश्क़ में, के तेरी खुदी मिटजाये।